क्यों हो ख़फ़ा से ! क्यों हो ख़फ़ा से !
ऊंचाइयों का अंबार है हाथ उठाकर छूना है । ऊंचाइयों का अंबार है हाथ उठाकर छूना है ।
आई आई बसंत बयार लहलहाते खेत खलिहान।। आई आई बसंत बयार लहलहाते खेत खलिहान।।
बस ज़रूरत होती है, तो खुद को खोलने की बस ज़रूरत होती है, तो खुद को खोलने की
वो दिल हैं मेरे मैं हूँ जिगर उनकी गले लग के रोती रहूँ यही दिल चाहे वो दिल हैं मेरे मैं हूँ जिगर उनकी गले लग के रोती रहूँ यही दिल चाहे
इतना भी ना स्वाद ले सारे मसाले भर मुठ्ठी में हम पर ही उड़ेल दे। आंखो में मिर्च की ज इतना भी ना स्वाद ले सारे मसाले भर मुठ्ठी में हम पर ही उड़ेल दे। आंखो मे...